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स्तनपान- स्पर्श की तपिश और अनुरक्ति का अहसास



शिशु के जन्म होते ही पहले स्पर्श का भी समय हो जाता है। स्पर्श की तपिश और अनुरक्ति का अहसास इतने बचपन में भी होता है। माँ की गर्मी के पास और साथ रह कर शिशु एक जुड़ाव महसूस करता है, स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है। शिशु को साफ और मुलायम कपड़ो में सही तरीके से लपेट कर जितनी जल्दी हो सके माँ को सौंप देना चाहिये। प्रसव के आधे घंटे के अंदर स्तनपान करवाना चाहिये। यह अवधि सीज़ेरियन प्रसव से हुए बच्चों के लिये एक घंटा मानी जा सकती है।
 Cow's milk is for the calf....your child needs yours!!
गाय का दूध बछड़े के लिये...आपके बच्चे को आपके दूध की जरूरत है।


हर माँ का दूध उसके शिशु के लिये एकदम उपयुक्त होता है। मतलब कि अगर शिशु 28 हफ्ते में ही जन्म ले तो उसके पाचन शक्ति और जरूरत के हिसाब का सही मात्रा में प्रोटीन्स, विटामिन्स और चर्बी दूध में होती है। जैसे उस शिशु के लिये उसके जरूरत के अनुसार खास ऑर्डर पर तैयार किया गया हो।
माँ का दूध मतलब माँ के आँचल में रह कर मिलने वाली खोराक- साफ, बिना झंझट, हमेशा फ्रेश, स्टेरिलाइसेशन की आवश्यकता से दूर, हमेशा माँ के पास, माँ के साथ...सही मात्रा में प्रोटीन, विटामिन्स,ग्लूकोस, फैट। साथ में रोग प्रतिकारक शक्ति। माँ से लगातार गहराता जुड़ाव। काउ मिल्क अलर्जी से दूर।
फायदें इतने हैं कि यह समझना कठिन है कि यहाँ भी फैशन ने बाजी मार ली है। फैशन, ट्रैन्ड, फिगर और कठिनाई जैसे बहानों का इस्तेमाल कर शिशु को इससे वँचित रखना दुखद है।
नवजात शिशु को देखना हमेशा एक सुंदर अनुभव रहा है। माँ के पास गर्म , मुलायम कपड़ों में लिपटा शिशु जल्द ही बगल में मुड़कर माँ को तलाशना शुरु करता है। होठों पर जीभ फेरकर दूध की माँग रखता है। यही सही समय है स्तनपान शुरु करने का।
शिशु के लिये स्तनपान सीखी हुई एक बात है। किन्तु पहली बार बनी माँ के लिये यह एकदम नया अनुभव है। माँ को सहजता से इसकी शुरुआत करनी चाहिये। माँ की विकलता शिशु तुरंत भाँप लेता है...इसीलिये परेशान माँ का शिशु भी अक्सर चिढ़चिढ़ा हो जाता है।
पहली बार स्तन से लगाना अपने आप में एक प्रक्रिया है। इसे लैच्चिंग ऑन कहते हैं। अगर सही तरीके से स्तनपान की शुरुआत की जाये तो माँ और शिशु के बीच के रिश्ते को अच्छी और तनाव रहित शुरुआत मिल सकती है।
1.शिशु का मुँह पूरी तरह खुलवायें। हल्के से शिशु के होंठ स्तन पर लगाने से वह पूरा मुँह खोल देगा...ऐसे जैसे उबासी में खोलते हैं।
2. फिर जिस हाथ में शिशु को सँभाला है उसे पास लाकर शिशु को स्तन के पास लाना है। ध्यान रहना चाहिये कि शिशु को माँ की तरफ लाया जाये ना कि माँ को शिशु की तरफ।
ध्यान रहे कि शिशु के मसूड़े स्तन के आसपास के एरियोला (स्तन के पास गहरे रंग की त्वचा)को पूरी तरह से मुँह के अंदर लें। शिशु के होंठ बाहर की तरफ मुड़े हुए हों।
3. इतना करने पर शिशु स्तन चूस कर दूध पीने की कोशिश करेगा। 
अगर शिशु स्तन से सही तरीके से जुड़ा हो और सही तरह से चूस रहा हो तो इस प्रक्रिया में स्तन में दर्द नहीं उठना चाहिये। अगर दर्द उठे तो स्तनपान रोक कर फिर कोशिश करनी चाहिये। शिशु के स्तन पकड़ने पर वैक्यूम बनता है और सक्शन एफैक्ट से दूध खिंचता है। जब भी शिशु को स्तन से हटाना हो तो स्तन और मसूड़े के बीच उँगली ड़ाल कर पहले वैक्यूम खत्म करें। कभी भी गलत तरीके से स्तनपान जारी ना रखे। इससे स्तन पर चीरे पड़ने का डर रहता है और शिशु को भी पर्याप्त मात्रा में दूध नहीं मिलता। 
माँ और शिशु के रिश्ते का एक अहम पहलू है स्तनपान। माँ की खुशबू, सपर्श की तपिश, और माँ की गोद की सुरक्षा...इन सबके लिये पहला अनुभव है स्तनपान। स्वाभाविक क्रिया है और जितना सहजता और आनंद से निभाया जाये उतनी ही संतुष्टि दोनो को मिलती है।


छह महीने तक शिशु को मात्र स्तनपान देने से उसकी सभी खोराक की जरूरत पूरी हो जाती है। सिर्फ माँ का दूध उसके लिये पर्याप्त है। इसे एक्सक्लूसिव ब्रेस्टफीड़िंग कहते हैं। छह महीने से माँ के दूध के अलावा कुछ और भी शुरू किया जाना चाहिये। स्तनपान मात्र खोराक ही नहीं पूरा करता किंतु इससे शिशु का पहला स्नेह संबंध बनता है। 
कहते हैं भगवान ने माँ को इसलिये बनाया क्योंकि हर जगह हर समय हर शिशु के पास नहीं रह सकता....काश हर शिशु के पास उसका अपना भगवान ......उसकी माँ हो....जो उसे ममता से सँभाल,दूध से सींच,स्नेह से छू....उसको उसकी अपनी पहचान दे.....

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