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समेकित बाल विकास सेवा कार्यक्रम

समेकित बाल विकास सेवा कार्यक्रम
परिचय
समेकित बाल विकास सेवा कार्यक्रम एक 100 प्रतिशत केन्द्रीय प्रायोजित योजना है जिसका उदगम बच्चो के लिए वर्ष 1974 मे बनी राष्ट्रीय बाल नीति, जिसमें कि बच्चों को राष्ट्र की परम महत्वपूर्ण सम्पति माना गया है, से हुआ है । इस कार्यक्रम का प्रारम्भ 2 अक्तूबर, 1975 को  राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्म दिवस से हुआ और प्रयोग के तौर पर यह कार्यक्रम सम्पूर्ण भारतवर्ष के चुने हुए 33 विकास खण्डों मे चलाया गया । हिमाचल प्रदेश में यह कार्यक्रम किन्नौर जिले के पूह विकास खण्ड मे प्रारम्भ हुआ । वर्तमान में इस प्रदेश के समस्त 75 विकास खण्डों मे और शिमला शहर में यह कार्यक्रम 18248 आंगनबाडी केन्द्रो के माध्यम से सफलता पूर्वक चलाया जा रहा है । इस कार्यक्रम के अन्तर्गत 76 बाल विकास परियोजनाएं चलाई जा रही है ।
कार्यक्रम के उद्देश्य
  • छः साल तक की आयु के बच्चों के पोषण व स्वास्थ्य में सुधार लाना ।
  • बच्चों के मानसिक, शारीरिक, सामाजिक व बौद्धिक विकास की नींव रखना ।
  • बाल मृत्यु दर व बच्चों में कुपोषण में कमी लाना ।
  • बच्चों के स्कूल छोड़ने की दर में कमी लाना ।
  • गर्भवती व दूध पिलाने वाली माताओं के स्वास्थ्य व पोषण स्तर में सुधार लाना।           
  • महिलाओ में स्वास्थ्य व पोषण बारे जागृति ला कर उन्हें इस काबिल बनाना कि वे अपने परिवार तथा विशेषतौर से अपनी और बच्चों की पौषाहार व स्वास्थ्य जरूरतों को स्वयं पूरा कर सके ।
आंगनबाड़ी में सेवाऐं
  • पूरक पौषाहार
  • अनौपचारिक स्कूल पूर्व शिक्षा
  • टीकाकरण
  • स्वास्थ्य जांच
  • पौषाहार एवं स्वास्थ्य शिक्षा
  • सन्दर्भ सेवाएं
1. पूरक पौषाहार कार्यक्रम 
गर्भवती व दूध पिलाने वाली माताओं व 6 वर्ष तक की आयु के बच्चो को आंगनबाड़ी में पूरक पौषाहार उपलब्ध करवाया जाता है ।
  • पौषाहार की दरें
प्रदेश सरकार 1.12.05 से बढी हुई दरों पर पौषाहार उपलब्ध करवा रही है । यह दरें निम्न रूप से हैः-
(दरें प्रति महिला/बच्चा प्रति दिन)
लाभ भोगी
आहार की लागत
ईधन व्यय
परिवहन व्यय
कुल
1. गर्भवती महिलाएं
4.70रू0
0.25रू0
0.15रू0
5.00रू0
2. दूध पिलाने वाली महिलाएं
4.70 रू0
0.25 रू0
0.15 रू0
5.00 रू0
3. किशोरियां
4.70रू0
0.25 रू0
0.15 रू0
5.00 रू0
4.बच्चे
3.60रू0
0.25 रू0
0.15 रू0
4.00 रू0
5. अति कुपोषित बच्चे
5.60रू0
0.25 रू0
0.15 रू0
600 रू0

  • पौषाहार का चयन
पौषाहार के चयन व क्रय हेतु राज्य स्तर पर निदेशक, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता की अध्यक्षता में एक चयन समिति गठित है । प्रबन्ध निदेशक, राज्य नागरिक आपूर्ति निगम, निदेशक स्वास्थ्य, निदेशक खाद्य एंव आपूर्ति, क्रय समिति के सदस्य है । समिति पौषाहार का चयन प्रत्येक चौमाही के पश्चात करती है । खाद्यान्न सामग्री की गुणवता सुनिश्चित करने के लिए जिला स्तर पर जिला कार्यक्रम अधिकारी आई0सी0डी0एस0 व क्षेत्रीय प्रबन्धक, राज्य नागरिक आपूर्ति निगम द्वारा खाद्यन्ना सामग्री का संयुक्त निरीक्षण किया जाता है ।
2. अनौपचारिक स्कूल पूर्व शिक्षा
  • अनौपचारिक स्कूल पूर्व शिक्षा 3 से 6 वर्ष की आयु के बच्चों को उपलब्ध करवाई जाती है ।
  • इस सेवा का उद्देश्य बच्चों का शारीरिक,मानसिक,सामाजिक एवं बौद्धिक विकास     करना है ।
  • बच्चों को अनौपचारिक स्कूल पूर्व शिक्षा खेल-खेल में चार्टो व खिलौनों इत्यादि के   माध्यम से दी जाती है ।
  • इस शिक्षा से बच्चे की मानसिक तौर पर स्कूल जाने की तैयारी हो जाती है ।
  • अनौपचारिक स्कूल पूर्व शिक्षा के फलस्वरूप बच्चों में प्राईमरी कक्षा में ही स्कूल छोड़ने की आदत में कमी आती है और बच्चा स्कूल जाने में प्रसन्नता अनुभव करता है ।
3.  टीकाकरण
  • गर्भवती माताओं को टेटनस व बच्चों को काली खांसी, खसरा, पोलियो जैसी बिमारियों से बचाव के लिए समय-समय पर टीके लगाने आवश्यक है ।
  • आगंनवाड़ी कार्यकर्ता स्वास्थय कार्यकर्ताओं के साथ तालमेल करके बच्चों व गर्भवती   माताओं के टीकाकरण की व्यवस्था करती हैं ।
  • टीकों का विवरण व उनको लगाने का समय निम्न तालिका में दिया गया हैः-
          तालिका


टीके का नाम
जिसको लगता है
टीका लगवाने का समय
1. टेटनस   
गर्भवती महिला
प्रथम प्रसूति में गर्भ के एक माह पश्चात व दूसरा एक माह के पश्चात
2. बी0सी0जी0
बच्चे को
जन्म के तुरन्त बाद या एक माह के भीतर
3. पोलियो(बूंदें) व डी0पी0टी0 पहला डोज
बच्चे को
बी0सी0जी0 के टीके के एक माह के बाद
4. पोलियो (बूंदें) व डी0पी0टी0 दूसरा डोज
बच्चे को
पोलियो व डी0पी0टी0 पहला डोज के एक माह के बाद
5. पोलियो (बूंदें) व डी0पी0टी0 तीसरा  डोज
बच्चे को
पोलियो व डी0पी0टी0 दूसरा डोज के एक माह के बाद
6. खसरा
बच्चे को
जन्म के 9-12 माह के दौरान
7. पोलियो बूस्टर
बच्चे को
जन्म के 16-24 माह के दौरान
8. डी0पी0टी0बूस्टर
बच्चे को
जन्म के 16-24 माह के दौरान

4. स्वास्थ्य जांच
  • गर्भवती माताओं, दूध पिलाने वाली माहिलाओं व बच्चों की नियमित स्वास्थ्य जांच सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक न्याय  एवं अधिकारिता विभाग स्वास्थ्य विभाग के साथ तालमेल करता है ।
  • चिकित्सा अधिकारी, महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता व महिला नर्स को अपने क्षेत्र में आने वाले सभी आंगनबाड़ी केन्द्रों में बच्चों व माताओं की मासिक स्वास्थ्य जांच करनी होती है ।
  • आंगनबाड़ी कार्यकर्ता भी हर माह 15 तारीख को बच्चों का वजन लेती है और बच्चे को   स्वास्थ्य परामर्श/जांच के लिये  आवश्यकता अनुसार कार्यकर्ता रेफर भी करती है ।
  • साधारण बिमारियां, जैसे कि सर्दी, जुकाम, बुखार, फोड़े-फुंसियां, पेट के कीड़े इत्यादि के उपचार के लिये आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को दवाईयों की किट उपलब्ध करवाई जाती है जिसमें से जरूरत पड़ने पर आंगनबाड़ी क्षेत्र में आने वाले स्थानीय लोंगों को कार्यकर्ता   दवाईयां उपलब्ध करवाती है ।
  • गर्भवती/प्रसूता महिलाओं में खून की कमी दूर करने के लिए उन्हें आयरन व फोलिक एसिड की गोलियां आंगनबाड़ी कार्यकर्ता स्वयं या स्वास्थ्य कार्यकर्ता के माध्यम से उपलब्ध करवाती है ।
  • बच्चों में अन्धापन रोकने के लिए उन्हें विटामिन-ए (घोल) उपलब्ध करवाया जाता है।
5. पौषाहार एवं स्वास्थ्य शिक्षा
  • आंगनवाड़ी कार्यकर्ता आंगनवाड़ी क्षेत्र में आने वाली समस्त महिलाओं के साथ बैठक      करके या घर-2 जा कर, उन्हें स्वास्थ्य देखभाल, खाने पीने की आदतों, स्वच्छता अपनाने, सीमित परिवार के लाभ इत्यादि बारे नियमित जानकारी देती है ।
  • आंगनवाड़ी कार्यकर्ता स्वास्थ्य शिक्षा के लिए स्वास्थ्य विभाग के प्रतिनिधियों से महिलाओं की मुलाकात करवा कर या स्वयं स्वास्थ्य जागृति शिविरों का आयोजन भी करती है ।
  • पोषाहार शिक्षा के लिए केन्द्रीय पोषाहार बोर्ड के साथ तालमेल करके पोषाहार कैम्पो का आयोजन किया जाता है जहां पर महिलाओं को घर पर ही उपलब्ध खाद्य सामग्री से सस्ते पौष्टिक व्यंजनो के बनाने बारे जानकारी दी जाती है ।
  • मासिक बैठकों में कार्यकर्ता को जो नवीनतम पौषाहार व स्वास्थ्य देखभाल बारे जानकारी दी जाती है  उसका प्रचार कार्यकर्ता अपने क्षेत्र में आने वाली महिलाओं   में गृह भ्रमण के दौरान करती है ।
  • जिला/ब्लाक/ग्राम स्तर पर विभाग जागरूकता शिविरों का आयोजन करता है ।
  • यह शिक्षा प्रत्येक माह की 15 तारीख को बच्चों के “ग्रोथ मोनिटरिंग” दिवस के   अवसर पर भी माताओं/अभिभावकों को दी जाती है ।
6.  सन्दर्भ सेवाए



  • स्वास्थ्य जांच के दौरान जो बच्चे/महिलाएं किसी गम्भीर बिमारी से प्रभावित पाये जाते है उन्हें सामुदायिक चिकित्सा केन्द्रों, जिला अस्पताल में विशेषज्ञों के परामर्श व उपचार के लिए रैफर किया जाता है ।
  • जिस बच्चे का वजन निरन्तर घट रहा हो और उसका पोषण स्तर भी गिर रहा हो उसे     भी बाल विशेषज्ञ के पास परामर्श/उपचार के लिये आंगनबाड़ी कार्यकर्ता रैफर करती है ।   
अन्य सेवाएँ
1.बालिका समृद्धि योजनाः-   बालिकाओं के प्रति समाज मे साकारात्मक दृष्टिकोण उत्पन्न हो सके, बालिका शिक्षा को प्रोत्साहन मिले, लडकी की कम आयु मे शादी रोकी जा सके व उसे आय उत्पादक गतिविधियों मे सहायक कौशल प्रशिक्षण प्राप्त  हो, इस आश्य से भारत सरकार द्वारा, 15 अगस्त 1997 को “बालिका समृद्धि योजना” को पूरे देश में लागू किया गया । सहायता का स्वरूप इस योजना के तहत 15 अगस्त 1997 को या उसके बाद जो भी बालिका गरीबी रेखा से नीचे जीवन व्यतीत कर रहे परिवार में जन्म लेती है, बालिका के जन्म होने पर पोस्ट डिलिवरी/प्रसवोतर अनुदान राशि मु0 500 रू पोस्ट आफिस या बैंक बचत खाते मे बालिका की माँ के आवेदन पर जमा करवाये जाते है । जब बालिका स्कूल जाना आरम्भ करती है तो उसे 6 से 18 वर्ष की आयु तक विभिन्न कक्षाओं के लिए विभिन्न दरों पर वार्षिक छात्रवृति भी दी जाती है । स्कीम का संचालन प्रदेश मे यह स्कीम पहले डी0आर0डी0ए0 द्वारा कार्यन्वियत की जा रही थी परन्तु वर्ष 2000-01 से यह स्कीम बाल विकास परियोजना अधिकारियों के माध्यम से संचालित की जा रही है । प्रक्रिया पात्र महिला निर्धारित प्रपत्र पर ग्रामीण क्षेत्रों मे सचिव, पंचायत अधिकारी व शहरी क्षेत्रों मे नगरपालिका अधिकारी को आवेदन कर सकती हैं । 

2. किशोरी शक्ति योजना  : इस योजना का मुख्य उद्देश्य 11 वर्ष से 18 वर्ष की आयु वर्ग की किशोरियों की स्वास्थ्य, पोषण व कौशल प्रशिक्षण सम्बन्धि जरूरतों को पूरा करना व बाल विवाह को रोकना है । पात्रता किशोरी शक्ति योजना के अन्तर्गत 11 वर्ष से 18 वर्ष की आयु वर्ग की किशोरियां स्कीम से सहायता की पात्र है । प्रक्रिया सम्बन्धित विकास खण्डों मे सर्वप्रथम किशोरियों की पहचान हेतु बाल विकास परियोजना अधिकारी, द्वारा सर्वेक्षण किया जाता है तत्पश्चात योजना से प्राप्त होने वाले विभिन्न लाभों के लिए किशोरियों की शैक्षिक योग्यता के आधार पर चयन किया जाता है । सहायता का स्वरूप किशोरियों को लाभ हेतु आंगनबाड़ी केंन्द्रों में पंजीकृत करना उन्हें पूरक पोषाहार, पोषाहार व स्वास्थ्य शिक्षा, निजि स्वच्छता व परिवार कल्याण बारे जानकारी देना, विभिन्न स्कीमों/ वैधानिक उपायों की जानकारी  देना तथा कौशल प्रशिक्षण उपलब्ध करवाना इत्यादि । 

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