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स्तनपान केवल पोषण ही नहीं, जीवन की धारा है


स्‍तनपान शिशु के जन्‍म के पश्‍चात एक स्‍वाभाविक क्रिया है। परन्‍तु पहली बार माँ बनने वाली माताओं को शुरू में स्‍तनपान कराने हेतु सहायता की आवश्‍यकता होती है। स्‍तनपान के बारे में सही ज्ञान के अभाव में जानकारी न होने के कारण बच्‍चों में कुपोषण का रोग एवं संक्रमण से दस्‍त हो जाते हैं।  स्तनपान शिशु के लिए संरक्षण और संवर्धन का काम करता है। मां का दूध (स्तनपान) केवल पोषण ही नहीं, जीवन की धारा है,  ज़िन्दगी के लिए अमृत समान  है.। इससे मां और बच्चे के स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
क्यों ज़रूरी है स्तनपान   
  • स्तनपान शिशु के लिए संपूर्ण पूरक और पोषक आहार है।
  • यह हर मौसम में सही तापमान पर बच्चे के शरीर में पहुंचता है।
  • स्तनपान करने वाले शिशु सामान्य शिशुओं की तुलना में कम बीमार पड़ते है। 
कोलस्ट्रम और उसके फायदे
मां के पहले दूध में कोलस्ट्रम पाया जाता है। कोलस्ट्रम पीले रंग का गाढ़ा दूध होता है, जो कि शिशु को रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है। बच्चे के जन्म के दो से चार दिन के बाद यह सामान्य दूध में बदल जाता है। समय से पहले पैदा हुए बच्चों के लिए कोलस्ट्रम बहुत आवश्यक है।
  • कोलस्ट्रम में अधिक मात्रा में प्रोटीन, विटामिन, मिनेरल और इम्यूनोग्लोबुलिन नामक पदार्थ पाये जाते हैं, जो शिशु की रोग प्रतिरोधी क्षमता को बेहतर बनाते है।
  • शिशुओं को पेट की समस्याओं से बचाता है कोलस्ट्रम। 
  • भारी मात्रा में प्रोटीन, विटामिन, मिनेरल होने के कारण कोलस्ट्रम शिशु की हडडियों के विकास के लिए और संपूर्ण विकास के लिए आवश्यक है।
  • कोलस्ट्रम शिशु को संक्रामक रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है।
किस उम्र के बच्चे को स्तनपान कराना चाहिए
  • नवजात शिशु को पहले 6 महीनों तक सिर्फ मां का दूध देना चाहिए, यहां तक कि पानी भी नहीं देना चाहिए। क्योंकि मां के दूध में पर्याप्त मात्रा में पानी भी होता है इसलिए बच्चों को पानी की भी आवश्यकता नहीं होती। 
  • 6 महीनों कें बाद शिशुओं को मां के दूध के साथ ठोस आहार देना शुरू करना चाहिए। शिशु का आहार तैयार करते समय साफ सफार्इ का खास ख्याल रखना चाहिएा शिशु का आहार तैयार करने से पहले हाथ साबुन से ज़रूर धुलेां बच्चे को ताज़ा और पोषक आहार दे। जब शिशु मां के दूध से ठोस आहार की ओर जाता है तो ऐसे में शिशु में पोषण की कमी होने का खतरा अधिक रहता है। ठोस आहार के साथ मां का दूध कम से कम दो  साल तक शिशु को देना चाहिए।
शिशुओं को स्तनपान कराने के लाभ
  • स्तनपान करने वाले शिशुओं में पेट की समस्याएं कम होती हैं क्योंकि मां का दूध आसानी से पच जाता है।
  • मां का दूध नवजात शिशु को एलर्जी, डायरिया, उलिटयां लगने और कान के संक्रमण से बचाता है।
  • बढ़ते शिशु को उसकी आवश्यकतानुसार मां का दूध सही मात्रा में प्राप्त होता है।
  • स्तनपान बच्चों में जन्म के समय होने वाली बीमारियों के खतरे को कम करता है।
  • यह भविष्य में होने वाली बीमारियों की भी सम्भावना कम करता है जैसे डायबिटीज, पेट की समस्याएं, कैंसर, रक्तचाप आदि । 
स्तनपान से मां को होने वाले लाभ
स्तनपान के फायदे सिर्फ शिशुओं में ही नहीं, बलिक मांओं में भी देखने को मिलते है।
  1. बीमारियों का खतरा कमस्तनपान कराने वाली महिलाओं में मधुमेह, स्तन कैंसर, ओवरी के कैंसर और पोस्टपार्टम डिप्रेशन का खतरा कम रहता है।
  2. पैसों की बचतदूध गर्म करने और बाजार से खरीदने का खर्च नहीं रहता। स्तनपान करने वाले बच्चे सामान्य बच्चों की तुलना में कम बीमार पड़ते हैं , इसलिए आपको बार- बार डाक्टर के पास नहीं जाना पड़ता।
  3. तनाव कम होता है : बच्चा जहां मां की गोद में अधिक सुरक्षित अनुभव करता है, वहीं मां को भी बच्चे के साथ थोड़ा समय मिल जाता है। शिशु की त्वचा के संपर्क में आने से महिलाओं में आकिसटोसिन नामक हार्मोन बनता है, जिससे तनाव कम होता है ।
  4. अधिक वज़न से छुटकारास्तनपान कराने वाली महिलाओं को अधिक कैलोरीज की आवश्यकता होती है, जिससे वज़न कम होता है और यूटेरस भी जल्दी आकार में आ जाता है।
फार्मूला फीड और मां के दूध में अंतर
  • मां का दूध शिशुओं के लिए सर्वोत्तम आहार है क्योंकि यह एलर्जी, अस्थमा और बहुत सी बीमारियों से शिशुओं को बचाता है। फार्मूला फीड से बच्चों का पेट भरा रहता है, लेकिन उन्हें मां के दूध जितना पोषण नहीं मिलता।
  • मां का दूध हर समय सही तापमान पर उपलब्ध होता है, लेकिन फार्मूला फीड को गर्म करके तैयार करना पड़ता है। इसके अलावा अगर फार्मूला फीड सफार्इ से ना तैयार किया जाये तो इससे संक्रमण का खतरा रहता है।
  • फार्मूला फीड को एक बार बनाने के बाद दोबारा प्रयोग नहीं करना चाहिएा इसे तैयार करने में कम से  कम 5 मिनट का समय लगता है।
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World Breastfeeding Week 2014


World Breastfeeding Week 2014

WABA has announced that the slogan and theme for

BREASTFEEDING: A Winning Goal - For Life!
This year's WABA World Breastfeeding Week (WBW) theme asserts the importance of increasing and sustaining the protection, promotion and support of breastfeeding - in the Millennium Development Goals (MDGs) countdown, and beyond.



Resources :
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माता शबरी महिला सशक्तिकरण योजना

माता शबरी महिला सशक्तिकरण योजना

उद्देश्य:

  • गरीबी रेखा से नीचे रह रहे अनुसूचित जाति के परिवारों की महिलाओं को अनुदान प्रदान करके उन्हें घरेलु कार्यों हेतु ईंधन, लकडी एकत्रित करने जैसे कार्यों से राहत दिलवाना
  • पर्यावरण में सुधार लाना। प्रत्येक वर्श प्रत्येक विधान सभा क्षेत्र में 75 लाभार्थियों को इस योजना में लाभान्वित किया जाता है।
पा़त्रता:
  • गरीबी रेखा से नीचे रह रहे परिवारों से सम्बन्धित महिलाएं
  • ऐसी महिलाएं जिन के परिवारों की वार्षिक  आय 35,000/-रु0 से अधिक न हो, 
  • महिला के साथ रह रहे परिवार सदस्य एल0पी0जी0 गैस कनैक्शन धारक न हों। 

सहायता राशि:
  1. एल0पी0जी0 गैस कनैक्शन, चूल्हा व अन्य सम्बंधित सामग्री की खरीद पर आई कुल लागत  के 50%  राशी की प्रतिपूर्ति जिसकी अधिकतम सीमा 1300 /- होगी उपदान के रूप में उपलब्ध करवाई जाएगी  ।
आवेदन प्रक्रिया:
आवेदन पत्र निम्नलिखित दस्तावेज सहित बाल विकास परियोजना अधिकारी के कार्यालय मे जमा करेंः


  1. बी.पी.एल प्रमाण पत्र।
  2. बी0पी0एल0 प्रमाण पत्र।
  3. वार्षिक आय प्रमाण पत्र।
  4. अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र।
  5. ग्राम सभा प्रस्ताव।
  6. आधार कार्ड की प्रति।
  7. राशन कार्ड की प्रति।
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Beti Hai Anmol Yojna (बेटी है अनमोल योजना)

बेटी है अनमोल योजना

उद्देश्य:
समाज में महिलाओं के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण  पैदा करना, बालिका जन्म व बालिका शिक्षा  को प्रोत्साहित करना तथा बाल विवाह को रोकना। योजना के अन्तर्गत अधिकतम 2 बालिकाओं को जन्मोपरान्त अनुदान व पहली कक्षा से 12वीं कक्षा तक छात्रवृति दी जाती है।

पा़त्रता:
  • बालिका के जन्म के समय परिवार गरीबी रेखा से नीचे हो।
सहायता राशि:
  1. जन्मोपरान्त अनुदान 10,000/- रु. 
    • (बालिका के नाम पर उसके व्यसक होने तक एफ.डी. की जाती है जो बाल विकास परियोजना अधिकारी के नाम बन्धक रखी जाती है, यदि बालिका विवाह 18 वर्ष से पूर्व हो या उसकी मृत्यु हो जाए तो सारी राशि विभाग को वापिस हो जाती है )
  2. वार्षिक  छात्रवृतिः प्रतिवर्ष  कक्षा उतीर्ण करने पर (पहली से 12 वी कक्षा तक) 
    • पहली से तीसरी कक्षा            300 रू.
    • चौथी कक्षा 500 रू.
    • पांचवी कक्षा 600 रू.
    • छटी से सातवी कक्षा              700 रू.
    • आठवी कक्षा                        800 रू.
    • नवी व दसवी कक्षा 1000रू.
    • ग्यारवी व बारहवी कक्षा 1500रू.
आवेदन प्रक्रिया:
आवेदन पत्र निम्नलिखित दस्तावेज सहित बाल विकास परियोजना अधिकारी के कार्यालय मे जमा करेंः
  1. बेटी जन्म का प्रमाण पत्र,
  2. बी.पी.एल प्रमाण पत्र
  3. हिमाचली प्रमाण पत्र
  4. आधार कार्ड की छायाप्रति,
  5. ग्राम सभा का प्रस्ताव,
  6. आवेदन पत्र/फार्म पंचायत प्रधान तथा पंचायत सचिव द्वारा प्रमाणित किया गया हो।
  7. यदि परिवार अनुसूचित जाति से सम्बन्धित है तो जाति प्रमाण पत्र,
  8. छात्रवृत्ति के लिए निर्धारित प्रपत्र पर आवेदन करना है तथा पास की गई कक्षा का प्रमाण पत्र सलंगन करें।
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Widow Remariage Scheme (विधवा पुनर्विवाह योजना )

विधवा पुनर्विवाह योजना 

उद्देश्य:
इस योजना का मुख्य उद्देश्य विधवाओं के पूर्नवास में सहायता करने हेतु पुरुषों  को विधवा महिला के साथ विवाह करने हेतु आर्थिक सहायता देकर प्रोत्साहित करना है।

पात्रता:
  • विधवाएं जिनकी आयु 18 वर्ष से 50 वर्ष  के मध्य हो,
  • पुरुश जिसकेे साथ विवाह होना है की आयु 21 से 50 वर्ष  के मध्य हो। 
सहायता राशि:
सहायता राशि 50000/- रु. ; 20,000/- रु. ऍफ़. डी.  द्वारा बैंक खाते मे जमा किया जाता है तथा मु. 30,000/- की एफ.डी. दुल्हन के नाम 5 वर्षो के लिए की जाती है।

आवेदन प्रक्रिया:
आवेदन पत्र विवाह होने के छः माह के भीतर निम्नलिखित दस्तावेज सहित बाल विकास परियोजना अधिकारी के कार्यालय मे जमा करेंः
  1. लड़की व लड़के का हिमाचली प्रमाण पत्र,
  2. लड़का व लड़की का आयु प्रमाण पत्र,
  3. पहले पति की मृत्यु का प्रमाण पत्र
  4. विवाह पंजीकरण प्रमाण पत्र।
  5. पुनर्विवाह पश्चात परिवार रजिस्टर की नकल,
  6. पति पत्नि का संयुक्त फोटो,
  7. आधार कार्ड की छायाप्रति,
  8. ग्राम सभा का प्रस्ताव,
  9. आवेदन पत्र/फार्म पंचायत प्रधान तथा पंचायत सचिव द्वारा प्रमाणित किया गया हो।
आवेदन प्रपत्र 
  आवेदन  प्रपत्र डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें
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Mukyamantri Kanyadaan Yojna (मुख्यमन्त्री कन्यादान योजना)

मुख्यमन्त्री कन्यादान योजना

उद्देश्य:
 बेसहारा महिलाओं/विधवाओं को अधिकतम 2 बेटियों के विवाह हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करना।

पात्रता:
जिन्हे अपनी बेटी का विवाह करना हो ऐसीः
  • बेसहारा महिलाएं/विधवाएं, 
  • नारी सेवा सदन की पूर्व प्रवासिनी हो, 
  • जिनकी मांताए उपेक्षित, पति द्वारा त्यागी गई, तलाकशुदा  महिलाएं हो,
  • जिनके पिता शारीरिक या मानसिक विकलांगता/लम्बी बीमारी से पीडित होने के कारण शैयाग्रस्त होने के कारण अपनी आजीविका कमाने में असमर्थ हो, 
  • जिनके संरक्षकों की वार्षिक आय 35,000/-रु0 से अधिक न हो। 
सहायता राशि:
25,000/-रु0 का अनुदान।

आवेदन प्रक्रिया:
आवेदन पत्र विवाह तिथि निर्धारित होने के बाद अथवा विवाह होने के छः माह के भीतर निम्नलिखित दस्तावेज सहित बाल विकास परियोजना अधिकारी के कार्यालय मे जमा करेंः
  1. लड़की व लड़के का हिमाचली प्रमाण पत्र।
  2. लड़का व लड़की का आयु प्रमाण पत्र।
  3. विवाह की निर्धारित तिथि का प्रमाण पत्र जो ग्राम पंचायत/शहरी निकाय द्वारा जारी हो । यदि विवाह हो चुका हो तो विवाह पंजीयक से जारी प्रमाण पत्र।
  4. आय का प्रमाण पत्र,
  5. पति की मृत्यु अथवा निःसहाय प्रमाण पत्र,
  6. हिमाचली प्रमाण पत्र,
  7. परिवार रजिस्टर की नकल,
  8. आधार कार्ड की छायाप्रति,
  9. ग्राम सभा का प्रस्ताव,
  10. आवेदन पत्र/फार्म पंचायत प्रधान तथा पंचायत सचिव द्वारा प्रमाणित किया गया हो।

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Mother Teresa Asahay Matri Sambal Yojna (मदर टेरेसा असहाय मातृ सम्बल योजना)

मदर टेरेसा असहाय मातृ सम्बल योजना

उद्देश्य:
  बेसहारा महिलाओं/विधवाओं को अधिकतम 2 बच्चों तक उनके  पालन-पोषण के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध करवाना ।

पात्रता:
  • गरीबी रेखा से नीचे रह रहे परिवारों की निःसहाय महिलांए:
    • विधवा महिलाएं,
    • तलाकशुदा महिलाएं,
    • महिलाएं जिनके पति दो साल से लापता हों और सम्बन्धित थाना में उनके न मिलने की रिपोर्ट दर्ज हों, या 
  • उक्त श्रेणी की महिलाएं यदि गरीबी रेखा से नीचे न हों तो परिवार की वार्षिक 35000/- रु. तक हो। 
  • जिनके बच्चे 18 वर्ष की आयु से कम हों 
सहायता राशि:
दो बच्चों तक प्रति वर्ष 3000/- रु. प्रति बच्चा 18 वर्ष तक की आयु तक।

आवेदन प्रक्रिया:
आवेदन पत्र के साथ निम्नलिखित दस्तावेज बाल विकास परियोजना अधिकारी के कार्यालय मे जमा करेंः
  1. आय का प्रमाण पत्र,
  2. पति की मृत्यु अथवा निःसहाय प्रमाण पत्र,
  3. हिमाचली प्रमाण पत्र,
  4. परिवार रजिस्टर की नकल,
  5. आधार कार्ड की छायाप्रति,
  6. ग्राम सभा का प्रस्ताव,
  7. आवेदन पत्र/फार्म पंचायत प्रधान तथा पंचायत सचिव द्वारा प्रमाणित किया गया हो।


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स्तनपान- स्पर्श की तपिश और अनुरक्ति का अहसास



शिशु के जन्म होते ही पहले स्पर्श का भी समय हो जाता है। स्पर्श की तपिश और अनुरक्ति का अहसास इतने बचपन में भी होता है। माँ की गर्मी के पास और साथ रह कर शिशु एक जुड़ाव महसूस करता है, स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है। शिशु को साफ और मुलायम कपड़ो में सही तरीके से लपेट कर जितनी जल्दी हो सके माँ को सौंप देना चाहिये। प्रसव के आधे घंटे के अंदर स्तनपान करवाना चाहिये। यह अवधि सीज़ेरियन प्रसव से हुए बच्चों के लिये एक घंटा मानी जा सकती है।
 Cow's milk is for the calf....your child needs yours!!
गाय का दूध बछड़े के लिये...आपके बच्चे को आपके दूध की जरूरत है।


हर माँ का दूध उसके शिशु के लिये एकदम उपयुक्त होता है। मतलब कि अगर शिशु 28 हफ्ते में ही जन्म ले तो उसके पाचन शक्ति और जरूरत के हिसाब का सही मात्रा में प्रोटीन्स, विटामिन्स और चर्बी दूध में होती है। जैसे उस शिशु के लिये उसके जरूरत के अनुसार खास ऑर्डर पर तैयार किया गया हो।
माँ का दूध मतलब माँ के आँचल में रह कर मिलने वाली खोराक- साफ, बिना झंझट, हमेशा फ्रेश, स्टेरिलाइसेशन की आवश्यकता से दूर, हमेशा माँ के पास, माँ के साथ...सही मात्रा में प्रोटीन, विटामिन्स,ग्लूकोस, फैट। साथ में रोग प्रतिकारक शक्ति। माँ से लगातार गहराता जुड़ाव। काउ मिल्क अलर्जी से दूर।
फायदें इतने हैं कि यह समझना कठिन है कि यहाँ भी फैशन ने बाजी मार ली है। फैशन, ट्रैन्ड, फिगर और कठिनाई जैसे बहानों का इस्तेमाल कर शिशु को इससे वँचित रखना दुखद है।
नवजात शिशु को देखना हमेशा एक सुंदर अनुभव रहा है। माँ के पास गर्म , मुलायम कपड़ों में लिपटा शिशु जल्द ही बगल में मुड़कर माँ को तलाशना शुरु करता है। होठों पर जीभ फेरकर दूध की माँग रखता है। यही सही समय है स्तनपान शुरु करने का।
शिशु के लिये स्तनपान सीखी हुई एक बात है। किन्तु पहली बार बनी माँ के लिये यह एकदम नया अनुभव है। माँ को सहजता से इसकी शुरुआत करनी चाहिये। माँ की विकलता शिशु तुरंत भाँप लेता है...इसीलिये परेशान माँ का शिशु भी अक्सर चिढ़चिढ़ा हो जाता है।
पहली बार स्तन से लगाना अपने आप में एक प्रक्रिया है। इसे लैच्चिंग ऑन कहते हैं। अगर सही तरीके से स्तनपान की शुरुआत की जाये तो माँ और शिशु के बीच के रिश्ते को अच्छी और तनाव रहित शुरुआत मिल सकती है।
1.शिशु का मुँह पूरी तरह खुलवायें। हल्के से शिशु के होंठ स्तन पर लगाने से वह पूरा मुँह खोल देगा...ऐसे जैसे उबासी में खोलते हैं।
2. फिर जिस हाथ में शिशु को सँभाला है उसे पास लाकर शिशु को स्तन के पास लाना है। ध्यान रहना चाहिये कि शिशु को माँ की तरफ लाया जाये ना कि माँ को शिशु की तरफ।
ध्यान रहे कि शिशु के मसूड़े स्तन के आसपास के एरियोला (स्तन के पास गहरे रंग की त्वचा)को पूरी तरह से मुँह के अंदर लें। शिशु के होंठ बाहर की तरफ मुड़े हुए हों।
3. इतना करने पर शिशु स्तन चूस कर दूध पीने की कोशिश करेगा। 
अगर शिशु स्तन से सही तरीके से जुड़ा हो और सही तरह से चूस रहा हो तो इस प्रक्रिया में स्तन में दर्द नहीं उठना चाहिये। अगर दर्द उठे तो स्तनपान रोक कर फिर कोशिश करनी चाहिये। शिशु के स्तन पकड़ने पर वैक्यूम बनता है और सक्शन एफैक्ट से दूध खिंचता है। जब भी शिशु को स्तन से हटाना हो तो स्तन और मसूड़े के बीच उँगली ड़ाल कर पहले वैक्यूम खत्म करें। कभी भी गलत तरीके से स्तनपान जारी ना रखे। इससे स्तन पर चीरे पड़ने का डर रहता है और शिशु को भी पर्याप्त मात्रा में दूध नहीं मिलता। 
माँ और शिशु के रिश्ते का एक अहम पहलू है स्तनपान। माँ की खुशबू, सपर्श की तपिश, और माँ की गोद की सुरक्षा...इन सबके लिये पहला अनुभव है स्तनपान। स्वाभाविक क्रिया है और जितना सहजता और आनंद से निभाया जाये उतनी ही संतुष्टि दोनो को मिलती है।


छह महीने तक शिशु को मात्र स्तनपान देने से उसकी सभी खोराक की जरूरत पूरी हो जाती है। सिर्फ माँ का दूध उसके लिये पर्याप्त है। इसे एक्सक्लूसिव ब्रेस्टफीड़िंग कहते हैं। छह महीने से माँ के दूध के अलावा कुछ और भी शुरू किया जाना चाहिये। स्तनपान मात्र खोराक ही नहीं पूरा करता किंतु इससे शिशु का पहला स्नेह संबंध बनता है। 
कहते हैं भगवान ने माँ को इसलिये बनाया क्योंकि हर जगह हर समय हर शिशु के पास नहीं रह सकता....काश हर शिशु के पास उसका अपना भगवान ......उसकी माँ हो....जो उसे ममता से सँभाल,दूध से सींच,स्नेह से छू....उसको उसकी अपनी पहचान दे.....

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